गुरु देव जगावे सुतोड़ा जागो
गुरु देव जगावे सुतोड़ा जागो
श्लोक:- कबीर कमाई आपकी,कबहि नही निसफल जाए,
सात समुन्द्र आड़ा पड़े, तो मिले अगाडी आये।
गुरु देव जगावे सुतोड़ा जागो, रामजी रा भजना तू कई भागो,
कई भागों रे वीरा कई भागो।।
कई काम करवा थाने भेजियो रामजी, कई काम करवा लागो,
रामजी बनायो थाने मिनक फूटरो, कर्मोती बनजे मत कागो,
खेल में जावे ओ तमासा में जावे, कुमार्ग मनड़ो परो लागो,
भगवा पेरो और चन्दन लगावे कंचन करो रे काया रो वागो,
दास प्रकाश संग जो कोई जागे, रामजी रो सुरों हमेशा आगे ,
भावार्थ
यह भजन संत परंपरा की गूढ़ वाणी है, जिसका मर्म साधक को जाग्रति और ईश्वर-भक्ति की ओर प्रेरित करना है। इसमें कबीर वाणी द्वारा कहा गया है कि संत-महात्मा की सच्ची साधना और कमाई (सत्संग, भजन, नामस्मरण) कभी निष्फल नहीं जाती। चाहे सात समुंदर बाधा बनकर खड़े हों, फिर भी उसका फल भक्त को अवश्य मिलता है। "गुरुदेव जगावे सुतोड़ा जागो" का आशय है कि सद्गुरु शिष्य को अज्ञान-निद्रा से जगाते हैं और प्रभु-भजन की ओर लगाते हैं। मनुष्य को अनेक सांसारिक कार्यों में व्यस्त रखकर ईश्वर ने उसे विवेक दिया है कि वह गलत राह छोड़कर सच्चा मार्ग चुने। भजन चेतावनी देता है कि दिखावे का भगवा वस्त्र, चंदन या सोने जैसी काया का कोई महत्व नहीं, यदि मन कुमार्ग में फंसा है। वास्तविक भाग्यशाली वही है जो सत्संग और प्रभु-स्मरण में जीवन लगाता है। अंत में कहा गया है कि जो संगति में जाग्रत होता है, वह रामजी के सुरों (भक्ति-मार्ग) में सदैव अग्रणी रहता है।